नेट मीटरिंग vs ग्रॉस मीटरिंग पर आये नए मापदंड
एक ऑनलाइन वेबिनार के दौरान, हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पुष्टि की कि भारत 2022 तक सोलर रूफटॉप क्षमता को दोगुना करने जा रहा है। 2022 तक भारत की 100 GW अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य में 40 GW सोलर रूफटॉप भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साथ ही अगर देखा जाये तो पिछले 2 वर्षों से, भारत ने सोलर रूफटॉप सेगमेंट में अपने वार्षिक लक्ष्य को नहीं छुआ है। लेकिन जिस प्रकार से चीजें आगे बढ़ रही हैं, यह बहुत स्पष्ट है कि केवल utility सेक्टर ही 60 गीगावॉट के अपने लक्ष्य को पूर्ण कर पायेगा। रूफटॉप सेगमेंट इन नीतियों के साथ 2022 तक अपने 40 GW लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होगा। जिसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक होगी, ग्रॉस मीटरिंग पर नई नीतियां। क्यूँकि, 10 किलोवाट से ऊपर की परियोजनाओं पर ग्रॉस मीटरिंग सहित नई नीति ने बाजार में बहुत अनिश्चितता पैदा कर दी है।
31 दिसंबर, 2020 को प्रकाशित Gazette of India के अनुसार, नेट मीटरिंग की सीमा निर्धारित की गई थी। जिसमे केवल 10 किलोवाट सोलर रूफटॉप तक ही नेट मीटरिंग को कराया जा सकता है। 10 किलोवाट से ऊपर सभी सोलर रूफटॉप स्थापना के लिए ग्रॉस मीटरिंग लागू होगी।
दोनों योजनाओ के बीच मूल अंतर यह है कि बिजली के इम्पोर्ट और बिजली के एक्सपोर्ट में नेट मीटरिंग टैरिफ के मामले में समान रहता है। जबकि ग्रॉस मीटरिंग के मामले में, यह टैरिफ अलग होगा। उपभोग्ता बनाई हुई बिजली को कम दाम में बेचता है, जबकि ग्रिड से बिजली खरीदने पर उपभोग्ता अधिक मूल्य देता है| हां, यह बात भी सच है कि भले ही नेट मीटरिंग और ग्रॉस मीटरिंग के टैरिफ में अंतर हो, लेकिन ग्रॉस मीटरिंग से उपभोक्ताओं के बिजली बिल को कम करने में मदद मिलेगी। केवल एक चीज जो बदल जाएगी वह यह है कि उपभोग्ता के लिए ROI (Return of Investment) का समय बढ़ जाएगा।
Institute for Energy Economics and Financial Analysis (IEEFA) और JMK Research के द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह बताया गया था कि ग्रॉस मीटरिंग का यह scenario कॉर्पोरेट और औद्योगिक उपभोक्ता को प्रभावित करने वाला है। जब नेट मीटरिंग शुरू की गई थी, तो बिजली के import और export के लिए समान दर सही साबित हो रहे थे। नेट मीटरिंग ने कभी भी बाजार में उपभोग्ता द्वारा सोलर रूफटॉप को अपनाने की दर को प्रभावित नहीं किया। रूफटॉप सोलर को अपनाने की दर में हमेशा ही गिरावट देखने को मिली है।
DISCOMs को नुकसान:
इस नई नीति को लाने का मुख्य कारण DISCOMs के घाटे को कम करना है। तो, सबसे पहले DISCOM को होने वाले इस नुकसान को समझते हैं। DISCOMs जिस दर पर आवासीय और कृषि उपयोगकर्ताओं को बिजली की आपूर्ति करता है, वह औद्योगिक उपयोगकर्ता की तुलना में कम है। इसके अलावा, उपयोगकर्ता अधिशेष में उत्पन्न होने पर बिजली बेचते हैं और जब उनकी मांग होती है तब वह बिजली खरीदते हैं।
इसका मतलब यह है कि उपभोगता दिन में जब लोड कम से कम होता है, तो DISCOM को बिजली बेचेंगे और शाम को जब लोड अधिकतम हो तो बिजली को खरीदेंगे। जब दोनों तरह के उपभोग्ताओ को selling difference को देखा जाता है तो हम देखते हैं कि डिस्कॉम को नुक्सान हो रहा होता है|
ग्रॉस मीटरिंग राज्य पर निर्भर करती है:
क्यूँकि, अब तक ग्रॉस मीटरिंग की कार्य प्रक्रिया प्रत्येक राज्य पर निर्भर करती है। यह देखकर, राज्य सरकारों ने DISCOM के financial Condition में सुधार लाने के लिए ग्रॉस मीटरिंग की नई नीतियों को लागू कर रहे हैं|
यह देखा गया कि पिछले महीने पश्चिम बंगाल ने नेट मीटरिंग स्वीकृत सीमा को 10 किलोवाट से घटाकर 5 किलोवाट कर दिया। अब कर्नाटक सरकार INR 2.84 / KW के निश्चित टैरिफ के साथ इसे अपनाना चाहती है। राज्य सरकारों को नेट मीटरिंग की नीति पर अपनी सीमाएं लागू करने के पैरामीटर को खुले दिल से अपनाया है| यह आगे सौर उद्योग, विशेष रूप से छोटे और मध्यम स्तर के डेवलपर्स, को प्रभावित करेगा।
संभव समाधान:
नई नीति पर सौर डेवलपर्स और सरकार के बीच का संघर्ष को देखते हुए, IEEFA-JMK रिसर्च के अनुसार एकमात्र समाधान “Net Feed-In Mechanism” है। Net Feed-In Mechanism नेट मीटरिंग और ग्रॉस मीटरिंग दोनों का मिला जुला रूप है। इस सिस्टम के तहत, स्वयं-उपभोग की शक्ति की गणना समान टैरिफ के अनुसार की जाएगी और उपभोग्ता द्वारा बेंची गई अतिरिक्त बिजली का मूल्य राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दर से की जाएगी। यह स्थिति उपभोक्ता और DISCOM दोनों के लिए एक अच्छी स्थिति होगी।
Ornate Solar, Canadian Solar panels, Renewsys Made in India Panels, Enphase Micro-Inverters, SolarEdge Solar inverters with Optimisers, Fronius OnGrid Solar Inverters. के आधिकारिक भागीदार हैं।
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